بسم
الله الرحمن الرحيم
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अल्लाह के नाम से आरम्भ करता हूँ जो बड़ा मेहरबान अत्यंत दयालु
है
अल्लाह
के
घर का
हज्ज
लेखक
अब्दुल्लाह
अल्काफ़ी अलमुहम्मदी
सहकारी कार्यालय निमंत्रण मार्गदर्शन एवं
समुदाय धार्मिक जागरूकता प्रान्त तैमा (तबूक)
सऊदी अरब
पोस्ट बॉक्स (१९८) पिन कोड (७१९४१)
दूरभाष (+९६६१४४६३१०९५) फैक्स (+९६६१४४६३२४९२)
بسم الله الرحمن الرحيم
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम
अल्लाह के नाम से आरम्भ
करता हूँ जो बड़ा मेहरबान अत्यंत दयालु है
الحمد لله
رب العالمين، والصلاة والسلام على نبينا محمد خاتم النبيين، وعلى آله وأزواجه وأهل
بيته وأصحابه أجمعين، ومن تبعهم بإحسان إلى يوم الدين.
"अलहम्दो
लिल्लाहे रब्बिल आलमीन, वस्सलातो
वस्सलामो अला नबीयेना मुहम्मदिन खातेमिन नबीयीन व अला आलेही व अज़्वाजेहि व अहले बैतेही
व असहाबेहि आजमईन, व मन तबेअहुम बे एहसानिन एला यौमिद्दीन"
सभी
प्रकार की स्तुति व प्रशंशा एकमात्र अल्लाह के लिए, जो निर्माता प्रजापति व पालनहार है संसारों का, और दरूद और शांति हो हमारे पैगंबर मुहम्मद पर, जो पैग़ंबरों
के शेष हैं, उन के परिवार उन की पत्नियों उनके घर वालों तथा उन के साथियों
पर भी, और उन पर भी जो न्याय के दिन तक धर्मार्थ के साथ इन
के मार्ग पर जीवन यापन करते रहे.
यह
पुस्तक इस्लाम के ५वें इस्तंभ "हज्ज" के संबंध में है, जो की धन वालों पर जीवन में एक बार अनिवार्य
है, अस्वस्थ्य
होने पर किसी दूसरे वयक्ति से यह कार्यभार अदा करवाया जा सकता है,
हज्ज एक महत्वपूर्ण श्रद्धा पूर्वक इबादत है,
इस लिए इस के नियम क़ानून और पूरी कार्यशेली अल्लाह के बताए आदेशानुसार
और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के दिखाए अथवा बताए अनुसार होना अत्यंत ज़रूरी है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने हज्ज
कार्य के बिच सभी हाजी गणों को सूचित करते हुए घोषणा किया था, की:
"خذوا عني مناسككم" (رواه البيهقي في السنن الكبرى)
अर्थ: "तुम सब हज्ज की पूरी कार्य कारिनि मुझ से सीख लो"
क्योंकि
मनमाने तरीके से अथवा देखा देखि अंजाम दिए गए हज्ज कार्य अल्लाह को स्वीकार्य नहीं
हैं, इस के लिए अल्लाह के आदेश और नबी के तरीके पर
अंजाम देना ज़रूरी है,
इस
पुस्तक के माध्यम से हज्ज संबंधी अल्लाह के आदेश और और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम
के हज्ज कार्य पर अदाएगी के तौर तरीके उपदेश और मार्गदर्शिता को उज्जलित करने की चेस्टा
की गई है,
ताकि जो वयक्ति हज्ज करना चाहे वह सठीक और अल्लाह की मंशा अनुसार
हज्ज संपन्न कर सके, और हज्ज के पीछे उद्देश्य को प्राप्त करने का शुभ अवसर पा सके,
हज्ज
की परिभाषा
हज्ज तीर्थ यात्रा
से विभिन्न है, इस के कार्य और
इरादे सब अलग हैं,
शब्दकोश में हज की परिभाषा
अरबी
शब्दकोश में हज की परिभाषा पर कई बातें कही गई हैं, परन्तु उन में २ बातें मुख्य रूप से कही गई हैं:
१
- इरादा करना: अर्थात अल्लाह के घर काबा की ज़्यारत का इरादा करना
२
- वर्ष या साल: अर्थात यह शुभ कार्य प्रति वर्ष एक बार ही अत है, (मक़ायिस
अल्लोग़ह २/ २९)
इस्लाम में हज की परिभाषा
जब
इस्लामी दृष्टिकोण से हज्ज कहा जाता है, तो उस का अर्थ होता है:
"विशिष्ट समय पर विशिष्ट स्थिति में विशिष्ट जगहों का विशिष्ट
कार्यों को अंजाम देने के लिए विशिष्ट इरादे से यात्रा करना" (अलमौसूअतूल फ़िक़हीयह अलकुवैतियह १७/ २३)
विशिष्ट समय
इस के यात्रा के लिए
विशिष्ट समय आरंभ होता है अरबी के ९वें महीने रमज़ान के शेष और १०वें महीने में ईद का चाँद नज़र आने से, और यह २ महीना १० दिन अरबी
के १२वें महीने ज़िल्हज्जह की १० तारिख तक चलता रहता है,
इस समय काल में कभी भी हज्ज का यात्रा किया जा सकता है,
परन्तु हज्ज के शुभ कार्य मात्र ६ दोनों में ही करने हैं,
८ ज़िल्हज्जह से १३ ज़िल्हज्जह के बिच ही हज्ज समप्न्न करना होता
है, न इस से पूर्व न इस के बाद, अल्लाह सुब्हानहु ने फ़रमाया:
﴿الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ فَمَن
فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا
فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي الْحَجِّوَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ يَعْلَمْهُ اللَّـهُ
وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَىٰ وَاتَّقُونِ يَا أُولِي
الْأَلْبَابِ﴾سورة البقرة: ١٩٧
अर्थ: "हज के महीने
जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे,
को हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा
और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता
होगा। और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और
समझवालो! मेरा डर रखो"
विशिष्ट स्थिति
विशिष्ट स्थिति का अर्थ एहराम के अवस्था में यह शुभ कार्य करने
के हैं, मक्कह में प्रवेश करने से पूर्व मीक़ात
(जहाँ से एहराम बंधा जाता है) एहराम की नियत करना है, जिस के
बाद बाल काटना, नाख़ून तराशना, सुगंध प्रयोग करना, पुरुष हो तो सर ढांकना, सिलाई
वाला वस्त्र पहनना, महिला के लिए मुख ढांकना, दस्ताना पहनना इत्त्यादि वर्जित हो
जाता है,
विशिष्ट जगह
विशिष्ट जगहों का अर्थ है मक्कह खाना काबा साफा व मरवह अरफात
मुज़दलीफह मीना इत्त्यादि, यदि
कोई वयक्ति यही सब कार्य इसी अवस्था में इन ही दिनों के अंदर किसी और जगह अंजाम देता
है, तो उसे हज्ज नहीं कहा जायेगा,
विशिष्ट कार्य
हज्ज के जो कार्य
(अरकान और वाजबात) हैं, उन
को अंजाम देने के इरादे से जाना, जैसे की: काबा का तवाफ़,
सफा और मरवह पहाड़ी के बिच चक्कर लगाना, मैदाने
अरफ़ात में रुकना, मीणा के मैदान में जमरात को पत्थर मारना,
क़ुरबानी करना इत्त्यादि,
विशिष्ट इरादा
इन सब के माध्यम से अल्लाह को संतुष्ट करने का इरादा होना
चाहिए, किसी को दिखाना सुनाना या वाहवाही लेना उद्देश्य
न हो, बल्कि यह सब कार्य के माध्यम से अल्लाह के आदेश का पालन
करना, अल्लाह को प्रसन्न करना, क्षमा प्राप्त
करना, पुण्य कमाना और स्वर्ग का हक़दार बनने का उद्देश्य होना
चाहिए,
हज्ज
एक धार्मिक कर्तव्य है
इस्लाम के पांच
बुनियादी स्तंभों में से एक स्तंभ हज्ज है, और यह जीवन में एक बार ज़रूरी है, अल्लाह सुब्हानहु ने फ़रमाया:
﴿وَلِلَّـهِ
عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ
سَبِيلًا وَمَن كَفَرَ فَإِنَّ اللَّـهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ﴾ سورة آل عمران: ٩٧
अर्थ: "लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको
वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे,
और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता)
अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।"
और नबी सल्लल्लाहु अलैहि
व सल्लम ने फ़रमाया:
سمعت رسول الله صلى الله عليه وسلم يقول: "بني الإسلام
على خمس شهادة أن لا إله إلا الله وأن محمدا رسول الله وإقام الصلاة وإيتاء الزكاة
وحج البيت وصوم رمضان" متفق عليه
अर्थ: "इस्लाम
की बुनियाद पांच (५) बातों पर रखी गई है: यह गवाही देना की अल्लाह तआला के अतिरिक्त कोर्इ सच्चा पूज्य नहीं। और
मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के संदेश्वाहक हैं। और नमाज़ क़ायम करना। और
ज़कात अदा करना। और बैतुल्लाह (मक्कह में खाना काबा) का हज्ज करना। और रमजान में
व्रत रखना", (बुखारी,
मुस्लिम)
शिशु काल में किया गया
हज्ज हो तो जाता है, परन्तु उस का फ़र्ज़ अदा नहीं होता, बालिग़ होने के के बाद उसे दोबारा करना पड़ेगा, रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म ने फ़रमाया:
"رفع
القلم عن ثلاثة عن النائم حتى يستيقظ وعن المبتلى حتى يبرأ وعن الصبي حتى يكبر" رواه أبو داوود
والنسائي وابن ماجة وصححه الألباني
अर्थ: "तीन
प्रकार के व्यक्तियों से क़लम उठा लिया गया है। (अर्थात उन के भूल चूक त्रुटि को
लिखा नहीं जाता) पहला सोया हुआ वयक्ति जब तक वह जाग न जाये। दूसरा जो बीमार है जब
तक स्वस्थ न हो जाये। और तीसरा नाबालिग बालक जब तक वह बालिग़ न हो जाये।" (अबू
दाऊद, नसाई, इब्न माजह,
शैख़ अल्बानी ने इस हदीस को सहीह (प्रमाणित) कहा है।
हज्ज
किस व्यक्ति पर अनिवार्य है
अल्लाह सुब्हानहु ने
फ़रमाया:
﴿وَلِلَّـهِ
عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ
سَبِيلًا﴾ سورة آل عمران: ٩٧
अर्थ: "लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको
वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज
करे।"
जिस के पास इतना धन
हो की वह आने जाने और वहां रहने का खर्च
वहन कर सके, और उस के वापस
आने तक घर वालों के गुज़र बसर के लिए इतना खर्च दे कर जा सके की उन के लिए काफी हो
जाये, उस पर ऋण क़र्ज़ अथवा उधार भी न हो, तो ऐसे वयक्ति पर जीवन में एक बार फ़र्ज़ होता है, यदि
कोई शरीर से अस्वस्थ्य है, तो किसी ऐसे वयक्ति से उस का पूरा
खर्चा वहन कर के बदल हज्ज करवा सकता है, जो पहले अपनी ओर से हज्ज
किया हुआ है,
"جاءت
امرأة من خثعم عام حجة الوداع قالت يا رسول الله إن فريضة الله على عباده
في الحج أدركت أبي شيخا كبيرا لا
يستطيع أن يستوي على الراحلة فهل يقضي عنه أن أحج عنه قال نعم" متفق عليه
अर्थ: "क़बीला खसअम
की एक महिला हज्जतुल विदा (नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के विदाई हज्ज वाले वर्ष)
में आई,
और बोली: हे अल्लाह के रसूल! हज्ज संबंध में बंदों पर अल्लाह
की ओर से कर्तव्य मेरे पिता पर लागु हो चूका है, जो की वृद्ध व्यक्ति हैं, सवारी पर बैठने की क्षमता नहीं रखते हैं,
तो क्या यदि मैं उन की ओर से हज्ज कर दूँ तो उन का फ़र्ज़ अदा
हो जायेगा? नबी
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
हाँ!" (बुखारी, मुस्लिम)
हज्ज
करने का लाभ
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु
अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
"من
حج هذا البيت فلم يرفث ولم يفسق رجع كيوم ولدته أمه" متفق عليه
अर्थ: "जिसने इस
घर (काबा) का ऐसा हज किया, जिस
में काम-वासना एवं पाप से (जुड़े हरकतों कल्पनाओं इशारों अथवा बोलने सुनने या देखने
से भी) बचा रहा, तो वह ऐसे (नए जन्मे बालक की तरह क्षमा प्राप्त
गुनाह मुक्त) वापस लौटता है, जैसे आज ही उस की माता ने उसे जन्म
दिया हो" (बुखारी, मुस्लिम)
और एक जगह रसूलुल्लाह
सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
"العمرة
إلى العمرة كفارة ما بينهما، والحج المبرور ليس له جزاء إلا الجنة" متفق عليه
अर्थ: "एक उमरह
दूसरे उमरह तक दोनों के बिच (गुनाहों) का कफ्फारह (पर्श्च्ताप) है,
और हज्ज मबरुर (जो सुन्नते रसूल के अंतर्गत अंजाम दिया गया हो,
और जिस में काम-वासना, गुनाह एवं लड़ाई झगड़े से बचा गया हो) का बदला केवल स्वर्ग"
(बुखारी, मुस्लिम)
हज
के स्तंभ
हज्ज के स्तंभ (अरकान)
अर्थात वह कार्य जो हज्ज का माथा या उसका जिगर हैं, जिन के बिना हज्ज का कोई कल्पना ही नहीं किया जा सकता,
भूल चूक, न जानना, कोई मजबूरी
अथवा छूटने का कारण चाहे जो भी हो, इन कार्यों में से कोई एक
भी छूट जाए तो हज्ज ही नहीं होता, और वह ४ चार हैं:
१ - एहराम: हज्ज कार्य
में प्रवेश का इरादा करना, इसी
नियत और दिल के इरादे को एहराम कहा जाता है, कल्पनिक रूप से अपने को उस अवस्था में लेजाना,
जहाँ भक्ति में लीन हो कर कई प्रकार की पाबंदी अपने ऊपर लागु कर लिया
जाए, जैसे काम-वासना से दुरी, सुगंध के
प्रयोग से परहेज़, बाल काटने एवं नाख़ून तराशने से बचना,
और पुरुषों के लिए सिलाई वाले वस्त्र और सर ढंकने से बचना इत्त्यादि,
यदि इन पाबंदियों का उल्लंघन किया गया तो यह हज्ज में दंडनीय अपराध है,
"إنما
الأعمال بالنيات، وإنما لكل امرئ ما نوى" صحيح البخاري
२ - काबा का तवाफ़: तवाफ़
कहते हैं चक्कर लगाने को, अल्लाह के घर काबा का ७ सात चक्कर लगाना एक तवाफ़ कहलाता है,
यह हज्ज का दूसरा रुक्न है, इस के बिना हज्ज हो ही नहीं सकता,
وليطوفوا
بالبيت العتيق
३ - सफा मरवह की साई:
सफा और मरवह दोनों पहाड़ियों के नाम हैं, जो काबा के आस पास हैं, इन दोनों के बिच ७ सात चक्कर लगाना,
सफा से मरवह एक चक्कर हुआ, और मरवह से सफा एक चक्कर, इस तरह ७ सात चक्कर लगाने हैं,
"اسعوا
فإن الله كتب عليكم السعي" رواه أحمد
४ - वक़ूफ़ अरफ़ह: वक़ूफ़
कहते हैं ठहरने को, और अराफात एक मैदान है, ९ ज़िल्हज्जह को सूर्य डूबने से पहले अराफात की सीमाओं के भीतर ठहरना,
कुछ छणों के लिए ही सही मगर यह अत्यंत महत्वपूर्ण है,
الحج عرفة
एहराम
के संबंध में कुछ विशेष बातें
जिस प्रकार नमाज़ आरंभ
करते समय नमाज़ में प्रवेश करने की नियत अथवा दिल में इरादा कर के "अल्लाहो अकबर"
कहते ही नमाज़ में प्रवेश हो जाता है, इस के बाद कई प्रकार के कार्य अवैध हो गए, स्वभाविक
स्थिति में जिन के करने की अनुमति थी, जैसे की चलना फिरना, खान पान करना, हंसना
बात करना इत्त्यादि, उसी प्रकार हज्ज या उमरह में प्रवेश की नियत और इरादा को एहराम
कहा जाता है, और
नियत करते समय "लब्बैकल्लाहुम्मा हज्जन" और यदि उमरह है तो "लब्बैकल्लाहुम्मा
उमरातन" कहते ही हज्ज या उमरह में प्रवेश हो जाता है,
इस के बाद कई प्रकार के स्वभाविक कार्य अवैध हो जाते हैं,
और जिस प्रकार बिना वज़ू
(मुंह हाथ धोना, सर
का मसह करना, और
पैर को धोना) के नमाज़ नहीं होती, इस लिए नमाज़ में प्रवेश करने से पूर्व वज़ू कर लिया जाता है,
इसी प्रकार पुरुषों के लिए सिलाई वाले वस्त्र पहन कर एहराम सहीह
नहीं होता, इसी
लिए एहराम में प्रवेश करने से पूर्व सिलाई वाले कपड़े उतर देना अनिवार्य है,
फिर बिना सिलाई वाले कपड़ों में एहराम में प्रवेश करना है,
कुछ लोग यह समझते हैं
कि जो कपड़े एहराम बांधते समय पहने जाते हैं, वही एहराम है, इस लिए उन कपड़ों को उसी जैसे दूर कपड़ों से बदलने,
या खोल कर ठीक से दोबारा पहनने से वह घबराते हैं,
वह समझते हैं की इस तरह उन का एहराम ही टूट जाएगा,
जबकि उन लोगों की यह समझ सहीह नहीं है,
एहराम तो इरादे का नाम है, कपड़ा तो मात्र इस लिए है की एहराम में सिले हुए कपड़े पुरुष के
लिए वर्जित हैं, एहराम
की अवस्था में नहाना, बिना सुगंध के साबुन लगाना, एहराम के कपड़े उसी जैसे दूसरे कपड़ों से बदलना,
उन कपड़ों को धो कर दोबारा पहनना इत्त्यादि हर्ज की बात नहीं
हैं,
हज
के वाजिबात
हज के कर्तव्य अथवा वाजिबात
वह कार्य कहलाते हैं, जो हज्ज में ज़रूरी हैं, परन्तु किसी कारणों से कोई छूट जाए तो उस का दंड (कफ्फारह,
क़ुरबानी) दे कर उस कमी की भरपाई हो सकती है,
हाँ यदि कोई जान बुझ कर बिना कारण के इन कार्यों में से कोई
एक या अधिक छोड़ दे, तो उस का हज्ज नहीं होगा, और यह ८ आठ कार्य हैं:
१ - मीक़ात से एहराम बांधना,
२ - अरफ़ह में ९ ज़िल्हज्जह
को सूर्य डूबने तक ठहरना,
३ - मुज़दलीफह में १०
ज़िल्हज्जह की रात बिताना,
४ - मिना में जमरात को
७,
७, पत्थर मरना,
५ - सर मुंडन करवाना
अथवा सर के बाल कटवाना,
६ - मिना में ११,
और १२ ज़िल्हज्जह की रात बिताना,
७ - यदि हज्ज के साथ
उमरह भी किया है, तो क़ुरबानी (पशु बलि) देना,
८ - मक्कह से निकलते
समय शेष काल में काबा का विदाई तवाफ़ करना,
मीक़ात
और एहराम
मीक़ात वक़्त से बना है,
और वक़्त अरबी में समय और सिमा को कहा जाता है,
अर्थात वह समय जब एहराम बांधा जाए,
और वह जगह जहां से एहराम बाँधा जाए,
मीक़ात २ प्रकार के हैं:
१ - समय,
अर्थात वह समय जब एहराम बाँधा जाए,
२ - जगह,
अर्थात वह जगह जहाँ से एहराम बाँधा जाए,
मीक़ात (समय)
उमरह के लिए कोई समय
सिमा नहीं है, कभी
भी इस के लिए एहराम बाँधा जा सकता है, हाँ जब इन जगहों के निकट से हो कर मक्कह की ओर जा रहे हों,
तो जिस समय इस सिमा के निकट से मक्कह प्रवेश कर रहे हों,
उस समय यहीं से एहराम की नियत करनी है,
परन्तु हज्ज के लिए समय का महत्व है,
ईद से बक़रईद के बिच ही हज्ज के उद्देश्य से एहराम बांधना वैध
है, अल्लाह सुब्हानहु ने फ़रमाया:
﴿الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَّعْلُومَاتٌ﴾سورة
البقرة: ١٩٧
अर्थ: "हज के महीने
जाने-पहचाने और निश्चित हैं"
मीक़ात (जगह)
मक्कह का पवित्र शहर
हरम (शांति पूर्वक, अम्न वाला और अयोध्या) है, इस शहर को चरों ओर से २ प्रकार की सीमाओं में घेर दिया गया है,
१ - हरम की सिमा: निकटतम
सिमा है,
जो मक्कह शहर के बिलकुल निकट बल्कि कई एक नई आबादियां जो मक्कह
से मिली हुई हैं, वह भी इस सिमा से बाहर हैं,
2 - मीक़ात की सिमा: दूसरी
सिमा मीक़ात है, हज्ज
या उमरह करने वाले जहाँ से एहराम बांधते हैं, प्राचीन काल से मक्कह शहर में प्रवेश करने के कई रास्ते रहे
हैं,
उन में से ५ पाँच रस्ते मुख्य हैं,
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उन पांचों रास्तों से
होते हुए हज्ज या उमरह के उद्देश्य से मक्कह शहर में प्रवेश करने वालों के लिए एहराम
बांधने की सिमा घोषित कर दिया था,
वह ५ पांच मीक़ात निम्न
प्रकार हैं:
१ - ज़िल्हूलैफह: इस समय
"आब्यार अली" के नाम से भी जाना जाता है, मस्जिद नबवी मदिनह मुनव्वरह से क़रीब १४ किलो
मीटर दूर मक्कह रोड पर है, और मक्कह से ४२० किलो मीटर की दुरी पर है,
सब से अधिकतम दुरी वाला मीक़ात यही है,
शायद दोनों हरम मक्कह और
मदिनह को आपस में जोड़ना भी इस का एक उद्देश्य हो सकता है,
मीक़ात के रस्ते गुज़रने
वाले: जो भी इन रास्तों से
गुज़रते हुए हज्ज या उमरह के उद्देश्य से मक्कह में प्रवेश करता है,
उस के लिए एहराम की नियत किए बिना इन सीमाओं को लांघना वर्जित
है,
और
किसी और रास्ते से जाने
वाले: यदि कोई किसी कारण इन
रास्तों को छोड़ किसी और रास्ते से जा रहा है, तो अपने निकटतम मीक़ात के बराबर या उस के सीधा से एहराम की नियत
करना सहीह है,
हवाई यात्रा या गाड़ी
से गुज़रने वाले: गाड़ी से चलते हुए,
अथवा हवाई जहाज़ से यात्रा करने वाले भी यदि मीक़ात की सिमा में
प्रवेश करें, तो
उस के सामने या उस के बराबर से एहराम की नियत करेंगे,
मीक़ात के अंदर रहने वाले: और जो मीक़ात की सिमा के अंदर रहने वाले हैं,
वह अपने घरों से ही एहराम बांधेंगे,
यहां तक की मक्कह वाशी भी अपने घर से ही एहराम बांधेंगे,
जिस का उद्देश्य हज्ज
या उमरह न हो: जो कोई वयक्ति मक्कह
में प्रवेश कर रहा हो, परन्तु
हज्ज या उमरह का इरादा नहीं है, किसी काम के उद्देश्य अथवा किसी
और कारण से मक्कह में प्रवेश कर रहा है, जैसे बस का ड्राइवर,
या वहां किसी से भेंट मुलाक़ात के इरादे से जा रहा हो, तो उस के लिए मीक़ात से एहराम बांधना ज़रूरी नहीं है, ऐसे
वयक्ति के लिए बिना एहराम के मक्कह में प्रवेश करना जाएज़ है,
"إن
النبي صلى الله عليه وسلم وقت لأهل المدينة ذا الحليفة ولأهل الشأم الجحفة ولأهل نجد قرن المنازل ولأهل اليمن يلملم هن لهن ولمن أتى عليهن من غيرهن ممن أراد الحج والعمرة ومن كان
دون ذلك فمن حيث أنشأ حتى أهل مكة من مكة" متفق عليه
मीक़ात
में क्या करना है
हज्ज
में प्रवेश अथवा एहराम से पूर्व
पुरुष को सिलाई वाले
सभी प्रकार के वस्त्र (यहां तक की बनियाइन अंडरवेयर इत्त्यादि) उतार कर बिना सिलाई
वाले कपड़े पहनने ज़रूरी हैं, सर खोल लेना है, मोज़े निकाल देने हैं, इसी प्रकार महिलाओं को नक़ाब और दस्ताने मोज़े इत्त्यादि को निकाल देना है,
और जिस कपड़े में है उसी में, या दूसरे आम ज़नाना कपड़ों में एहराम बांधे,
चेहरा खुला रक्खे, यदि कोई अजनबी की नज़र पड़ रही हो तो दोपट्टा चेहरे पर लटका ले,
हज्ज
के प्रकार
हज्ज
कार्य की अवधि एवं समय सारणी
१ - ८वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का पहला दिन है, इसे अरबी में "यौम ए तरवेयह" कहा जाता है,
इस दिन सभी हाजी गणों को एहराम के अवस्था में सूरज ढलने से पहले
मैदाने मिना पहुंचना रहता है, दूसरे दिन की फज्र की नमाज़ तक यहाँ पर रुकना होता है,
सभी नमाज़ों को उन के अपने अपने समय में परन्तु ४ रकाअत वाली
नमाज़ों को २, २,
रकाअत करके पढ़ा जायेगा, यदि कोई वयक्ति इस दिन मिना न जाये,
तो कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि यह सुन्नत है वाजिब नहीं,
२ - ९वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का दूसरा दिन है, इस को अरबी में "यौम ए अरफ़ह" कहा जाता है,
इस दिन को "हज्ज ए अकबर" अथवा "यौमुल हज्ज"
भी कहा जाता है, इस
दिन सभी हाजी गणों को एहराम के अवस्था ही में सूरज ढलने से पहले मैदाने अरफ़ात पहुंचना
रहता है,
ज़ुहर के समय में ही एक अज़ान से ज़ुहर और असर दोनों नमाज़ों को
२,
२, रकाअत कर के पढ़ लेना होता है, सूर्यास्त (सूर्य डूबने के बाद) सभी हाजी गण अरफ़ात से मुज़दलीफह
के लिए निकलते हैं, और जब भी मुज़दलीफह पहुंचें, एक अज़ान से पहले मग़रिब की ३ रकाअत फिर ईशा की २ रकाअत नमाज़ अदा
करते हैं,
उस के बाद मुज़दलीफह ही में सो जाते हैं,
हाजी के लिए इस दिन सूर्य डूबने से पहले अरफ़ात पहुंचना अत्यंत
महत्वपूर्ण है, यदि
किसी वयक्ति का अरफ़ात में इस दिन सूर्य डूबने से पहले पहुंचना छूट गया,
तो उस का हज्ज छूट गया,
३ - १०वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का तीसरा दिन है, इसे अरबी में "यौमून नहर" अथवा "हज्ज ए अकबर" कहा जाता है,
सूर्य प्रकट होने के बाद मुज़दलीफह से मीना के लिए निकला जाता
है,
और मीना पहुँच कर सब से पहले जमरात में जाया जाता है,
पहले और दूसरे जमरह को छोड़ मात्र तीसरे जमरह जिस को "जमरह
अक़बह" कहा जाता है, उस को ७ सात कंकरियां मारना होता है, इस के बाद यदि हज्ज के साथ उमरह भी है,
तो पशु क़ुरबानी अदा की जाती है,
फिर बाल काटे जाते हैं, उस के बाद मक्कह जा कर काबा का तवाफ़ और सफा व मरवह की सई (दोनों
पहाडियों के बिच ७ सात फेरा लगाना) होता है, फिर इस के बाद रात मीना में आ कर गुज़ारना अनिवार्य है,
४ - ११वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का चौथा दिन है, इसे अरबी में "यौम ए तशरीक़" कहा जाता है,
इस दिन सूर्य ढलने के बाद पहले छोटे जमरह को ७ सात पत्थर,
फिर बिच वाले जमरह को ७ सात पत्थर इस के बाद तीसरे जमरह
"जमरह अक़बह" को ७ सात पत्थर मारने होते हैं,
यह रात भी मीना में बिताना ज़रूरी है,
५ - १२वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का पाँचवां दिन है, इसे भी अरबी में "यौम ए तशरीक़" कहा जाता है,
इस दिन भी तीनों जमरात को सूर्य ढलने के बाद उसी तरतीब से ७,
७, पत्थर मारने होते हैं, यदि कोई वयक्ति आज ही हज्ज कार्य संपन्न कर के जाना चाहे तो ऐसा कर सकता है,
परन्तु उस के लिए ज़रूरी है की सूर्य डूबने से पहले पहले तीनों
जमरात को पत्थर मार कर मीना की सीमाओं से बाहर निकल जाये,
यदि वह मीना की सीमाओं के अंदर ही है और सूर्य डूब गया,
तो वह रात भी मीना में बिताना वाजिब हो जायेगा,
फिर उस के दूसरे दिन सूर्य ढलने के बाद तीनों जमरात को ७,
७ पत्थर मारने के बाद ही वह जा सकता है,
६ - १३वां ज़िल्हज्जह:
यह हज्ज का छठवां दिन है, और इसे भी अरबी में "यौम ए तशरीक़" कहा जाता है,
इस दिन भी तीनों जमरात को सूर्य ढलने के बाद उसी तरतीब से ७,
७, पत्थर मारने होते हैं, और इसी के साथ हज्ज के सभी शुभ कार्य संपन्न हो जाते हैं,
मात्र एक ज़रूरी काम रह जाता है,
वह यह है की जिस दिन मक्कह से वापसी के लिए निकल रहा होगा,
तो शेष काल में बिलकुल आखरी छण में काबा का विदाई तवाफ़ करना
है,
इस तरह पहला और आखरी
दिन ज़रूरी न होने के कारण यदि निकाल दें, तो हज्ज के कुल ४ चार दिन ही होते हैं,
प्रति वर्ष इन ही ४ चार दिनों में हज्ज कार्य समाप्त हो जाते
हैं,
लेखक
अब्दुल्लाह अल्काफ़ी अलमुहम्मदी
धार्मिक शिक्षा व आमंत्रण गैर अरब समुदाय विभाग
सहकारी कार्यालय धार्मिक शिक्षा व मार्गदर्शन
प्रान्त तैमा, क्षेत्र तबूक, सऊदी अरब
दिनांक: ०१/ ०४/ १४३९ ह. दिन: बृहस्पतिवार
मुताबिक: १९/ १२/ २०१७ ई.
एहराम: यह एक विचाराधार
स्थिति है, एहराम का अर्थ है
हज्ज में प्रवेश का इरादा करना, इसी नियत और दिल के इरादे को
एहराम कहा जाता है, जिस प्रकार नमाज़ में प्रवेश करने से पूर्व वज़ू किया जाता है, फिर अल्लाहो अकबर कह कर प्रवेश किया जाता है, उस के बाद
कई प्रकार के स्वभाविक कार्य वर्जित हो जाते हैं, जैसे खान पान
हंसना बोलना इत्त्यादि, इसी प्रकार हज्ज में प्रवेश अर्थात एहराम
से पूर्व पुरुष सिलाई वाले कपड़े उतार कर बिना सिलाई वाले कपड़े पहन लेता है,
फिर हज्ज में प्रवेश का इरादा करता है, और
"लब्बैकल्लाहुम्मा हज्जन" कहता है, इस के बाद उस पर
कई प्रकार के स्वभाविक कार्य उस पर वर्जित हो जाते हैं,
कल्पनिक रूप से अपने
को उस अवस्था में लेजाना, जहाँ
भक्ति में लीन हो कर कई प्रकार की पाबंदी अपने ऊपर लागु कर लिया जाए, जैसे काम-वासना से दुरी, सुगंध के प्रयोग से परहेज़,
बाल काटने एवं नाख़ून तराशने से बचना, और पुरुषों
के लिए सिलाई वाले वस्त्र और सर ढंकने से बचना इत्त्यादि, यदि
इन पाबंदियों का उल्लंघन किया गया तो यह हज्ज में
दंडनीय अपराध है,
लेखक
अब्दुल्लाह अल्काफ़ी अलमुहम्मदी
धार्मिक शिक्षा व आमंत्रण गैर अरब समुदाय विभाग
सहकारी कार्यालय धार्मिक शिक्षा व मार्गदर्शन
प्रान्त तैमा, क्षेत्र तबूक, सऊदी अरब
दिनांक: ०१/ ०४/ १४३९ ह. दिन: बृहस्पतिवार
मुताबिक: १९/ १२/ २०१७ ई.